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________________ पाणीने हरखीयो, तेडयो जोजन करवा बुध ॥ सो ॥ पग माबानुं गुरुर्नु पगरखं, गर्नु| सीधुं न जाणे मूढ ॥ सो पु० ॥ १४ ॥ सुहम खंड करी वघारीयु, दहीनो दीयो काको कोल ॥ सो० ॥ शाक करी पीरसे निज हाथY, गुरु शिष्य जमतां करे कलोल an सो पु॥ १५ ॥ अद्भुत व्यंजन शाक समारीयो, पदमश्रीने दे श्याबास ॥ सो० ॥ आवमा खंमनी ढाल बही कही, नेमविजयनी बुद्धि प्रकाश ॥ सो पु० ॥ १६ ॥ उदा. जोजन करीने उठीया, दीधां फोफल पान ॥ आज कृतारथ हुँ थयो, गणुं जनम सुप्रमाण ॥१॥ बाहिर श्रावी वाणही, जोवे गुरुजी जाम ॥ एक अजे बीजी नहीं, पूरे सेवक ताम ॥२॥ शोध करी सघले कडं, अमे न जाणुं पूज्य ॥ पदमश्री श्रावीने कहे, तुमने न पडे सूज ॥ ३॥ गति जाणो मुज तातनी, पेट पड्युं पगत्राण ॥ पोता ने प्रीडो नहीं, अहो नबुं तुम ज्ञान ॥४॥ बुध गुरु रीसे धडधड्यो, मुखथी बोले ल गाल ॥ खाg अमे शुं खासकुँ, पापिणी बोल संजाल ॥५॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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