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________________ धर्मपरी ॥१५॥ हेतुं नहींरे, जीतारि कहे तामरे ॥ जीत्यो नर लक्ष्मी लहेरे, वरे मृतने सुरवाम ॥ ए०॥१७॥ जीवे च लभ्यते लक्ष्मीः। मृते चापि सुरांगना ॥ कायोऽयं क्षण विध्वंसी । का चिंता मरणे रणे ॥१॥ पामे शिवसुख जीवतोरे, एम समजाव्यो नरंदरे ॥ आठमा खमनी पांचमीरे, ढाल कही नेमे आणंदरे ॥ ए० ॥ १७ ॥ उदा. जीतारि गढमां रह्यो, नवदत्त नांजी पोल ॥ नगर बुंटवा मांडीयो, थयो हाल कलोल ॥१॥ मुज कारण अनरथ होये, सुमित्रा देख सरूप ॥ सागारी अणसण पर कोड सती करी, जाइ पमी जल कूप ॥२॥ पुण्य प्रनावे थल थयु, थावी सुरवर कोड ॥ सती थापी सिंहासने, उजा बे कर जोम ॥३॥ राजजुवनमा पेसतां, देवे थंन्यो नवदत्त॥ एहवे किणही श्रावीने, कहे सुमित्रा वत्त ॥ ४ ॥ तज्यो क्रोध अहंकार सुण, पाम्यो परम समाध ॥ सुमित्राने श्रावी कहे, नगिनी खम अपराध ॥ ५ ॥जीतारि जवदत्त ॥१५५॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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