SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मपरी खंगत ॥१५ ॥ उहा. - धन लेवा ब्राह्मण गया, तव ते थया अंगाल ॥ क्षण एक रहीने वली ग्रहे, जव थाये ते व्याल ॥१॥ वृझे नूपतिने कडं, नहीं जगन फल नाथ ॥ विश्वनूति कृत | दान फल, इह नव परन्नव साथ ॥२॥ नूप नणे विश्वनूतिने, हुं श्राव्यो तुज गेह NI जगन्य श्राध फल लेश्ने, दान बाध फल देह ॥३॥ विश्वनूति बोले हसी, दान फल न देवाय ॥ देव तणुं वित्त व्यो तमे, अध फल द्यो कहे राय ॥४॥ | विश्वनूति वलतुं कहे, सांजल राय सुजाण ॥ स्वर्ग मुक्ति सुख जेहथी, ते कोण वेचे | दान ॥५॥ देखी सत्य नृप हिज तj, त्रुट्यो आपे रिक॥ दलिज गयुं विश्वन्नूतिनुं, जिहां साहस तिहां सिझ ॥ ६॥ नूपति पूजे मुनि प्रते, दान केतां कहो वाम ॥ त्रिधा दान मुनिवर कहे, दीधे सीजे काम ॥ ७॥ ढाल चोथी. नयरो नगीनो मारो, हाररो हीरो मारो, केसररो जीनो मारो साहेबो, राजेंड मारा, घडी एक रहो जूकाय हो-ए देशी. शास्त्रे दान ते जाणीए, राजेंड मारा, रा लिख लिखावी ग्रंथ हो ॥ साधु नणी १५२॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy