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________________ धर्मपरीपरधान ॥ ७॥ कन्या कपिला धेनु वली, महादान दश एह ॥ पण अतिशय दीगे दाखंग । नहीं, शुं कारण तेह ॥ ७॥ ॥१५॥ ढाल त्रीजी. नणदलनी देशी. ___ मुनिवर कहे महेता सुणो, असंजति एह अजाण ॥ शुन्न मन ॥ कायनी हिंसा करे, तेणे फल नहीं मन आण ॥ शु० मु॥१॥ ए आंकणी ॥ उखर खेत्रे वावीयो, जेम निष्फल थाये बीज ॥ शु० ॥तेम दी, कुपात्रने, ते पण गणो तिमहीज ॥ शुन मु० ॥२॥ ज्ञानवंत क्रिया करे, ते जाणीजे सुपात्र ॥ शु॥तेहने दीधुं बहु फले, तप करे निरमल गात्र ॥ शुग मु० ॥३॥ यतः-एकवापीजलं सिक्त-माने मधुरतां व्रजेत् । निंबे च कटुतां याति । पात्रापात्रनियोजनात् ॥ १॥ NI पूजे मंत्री मुनि प्रते, चित्त कोमल नहीं धी॥शु०॥माहारी परे बीजे केणे, दान MIn५३॥ तणां फल दीठ ॥ शु० मु०॥४॥विश्वनूति ब्राह्मण तणी, कथा कहे मुनिराज ॥ शु॥ अादेश वैराट दक्षिण दिशे, सोमप्रन तिहां राज ॥शु मु०॥५॥ ब्राह्मणने माने घj,
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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