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________________ कोइ न माइ तोले ॥ १३ ॥ मन माने ते हवे तुं माग, बंधूसरी चिंते मुज लाग ॥ गद्गद साद पुत्री विरतंत, जयसेनाने मारो महंत ॥ १४ ॥ कालीचौदश कहे कपाली, विद्या साधीश समरीश बाली॥ हरखी बंधूसरी मन कूमी, दशमी ढाल नेमे कही रुमी ॥ १५॥ उदा. कालीचौदशने दिने, जोगी जश् मसाण ॥ वेताली देवी तणुं, समरण करे सुजाण ॥१॥प्रत्यद थ देवी कहे, वच्च समरी श्ये काज ॥ जयसेनाने मारो जश्, करो वेगे ए काज ॥२॥ देवी आवी मारवा, कर साही करवाल ॥ सामुं जोश नवि शकी, पोसह व्रत रखवाल ॥३॥त्रण प्रदक्षणा देश्ने, आवी जोगी पास ॥ तिमहिज पाली मोकली, जयसेना श्रावास ॥४॥ वार त्रण एम देवता, श्रावी फरी मसाण ॥ जोगी चिंते मुजने, मारे हवे निदान ॥५॥ जयसेना अथ सुंदरी, बेहुमां विरु जेह ॥ मारो माता तेहने, म करो को संदेह ॥६॥ जश्ने मारी सुंदरी, |देवीए ततकाल ॥ परने चिंते पाडुर्ज, तेना एवा हाल ॥७॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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