SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हारीयां, सुर गयो स्वर्ग मोजार ॥ ३ ॥ केणे दीक्षा के बार व्रत, केणे समकित सुविशेष | बालपणे दृढ हुं थयो, धरम तणां फल देख ॥ ४ ॥ कहे सघली साचुं कयुं, कुंदलता कहे जूठ ॥ राजा श्रेणिक चिंतवे, अहो नारी ए डूव ॥ ५ ॥ मुज पिताना राजमां, ए इ सघली वात ॥ पापण ए माने नहीं, पूढीश हुं परजात ॥ ६ ॥ शेठ कड़े जयश्री प्रते, सुण गोरी गुणराश ॥ तें दीतुं कं सांजस्युं, धर्मफल तेह प्रकाश ॥ 9 ॥ ढाल दशमी. चोपानी देशी. कड़े पहेली नारी सुणो कंत, नगरी उजेपीए नृप गुणवंत ॥ संग्रामसुर नामे जयकारी, शेव रिषनसेन समकितधारी ॥ १ ॥ तेहने घर जयसेना नारी, शील गुणे सीता अवतारी ॥ समकितवंत सदा सत्य संधा, कर्म वशे करी ते बे वंध्या ॥ | २ || एकदा नाह जणी ते जाखे, पुत्र विना कोण वंशने राखे ॥ एक घमीमां घमी जल बुके, नंदन विष नाम क्षणमां कुले ॥ ३ ॥ बीजी नारी तणो विवाद, कंत करो करी मन उच्छाद ॥ वय परिणत थइ सुण नारी, वात म काढे ए मुख बहारी
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy