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________________ तुमे एम, फुःख जोगवो बो खोटुं जेमरे॥ मा० ॥ १३ ॥ प्राये नारी कही ले खोटी, || कूड कपटनीमति ने डोटीरे॥माहैयानी वात नवि खोले, सनावे जूतुं बोलेरेमा॥१॥ बार धार श्रशुचिनां ठाम, लोजी निरदयनी हामरे ॥ मा० ॥ शोक करो किण काम, लोक मांहीं जासे तुम मामरे ॥मा०॥ १५ ॥ तुमे पंडित मोटा जानी, नण्या गण्या गे| गुण ज्ञानीरे ॥ मा० ॥धरी वैराग मन मांहीं, राम नाम लाजे उहीरे ॥ मा०॥ १६ ॥ नूतमति सांजली कोप्यो, ब्राह्मणनो वयण ते लोप्योरे ॥ मा० ॥ तुं शुं जाणे अजाण, मुज आगे वात परमाणरे ॥ मा० ॥ १७ ॥ हरि हर ब्रह्मादिक जेह, नारीने वश पड्या तेहरे॥ माण्॥श्रम सरिखा पाठक पंड्या, शास्त्र विद्यानी वाते मंड्यारे ॥मा॥१॥मति तुं अमने आपे, एहवी बुद्धि श्रमारी उथापेरे ॥ मा०॥ महा रांगना जा तुं हांथी, मति देवा श्राव्यो ने क्याथीरे॥ मा० ॥ २७ ॥ ते ब्राह्मण गयो एम वारी, नूतमतिए काबुद्धि विचारीरे॥मा॥पहेले खंडे कही ढाल श्राउ,नेमविजय कहे जुर्म गठ माणा०॥ बेहु तुंब हाथे प्रही, अस्थि घाल्यां मांहीं ॥ स्त्री विद्यारथी बे तणां, लश् चाख्यो| शाही ॥१॥ गंगाजी जात्रा जणी, मारग जातां गाम ॥ श्राव्यो एमां ए गयो,
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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