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________________ खंग धर्मपरी ॥१४३॥ ढाल नवमी. नमणी खमणी ने गयगमणी-ए देशी. चोर कहे सांजल व्यवहारी, तुं तो मोटो परउपगारी ॥ शियाले खाधा मुज च-IN कारण, कागे मस्तके पाड्यां वरण ॥ १॥ पूरव कर्मे कमाया पोते, ते सवि उदय श्राव्यां|| जोते ॥ पाणी माग्युं बहु जण पासे, कोई न पाये सहुको नासे ॥२॥ त्रण दीवसनो तरस्यो हुं बुं, तुजयी पाणी पीवा वांडं ॥ तुं धरमी पाणी जो पाये, तो मुज प्राण सुखे सही जाये ॥ ३ ॥ जलसीत करुणा कहे शेठ वाणी, हमणां तुजने पाशु पाणी॥ हूं लेवा जलं वं श्राप, पंच परमेष्टी जपे तुं जाप ॥४॥ एम कहीने तस। मंत्रज नाख्यो, मुजने तेने थानके राख्यो ॥ जल लेश्ने आवे वेदेला, चोरे प्राण तज्या ते पेहेला ॥५॥ महा मंत्र मन निश्चल ध्यायो, पहेले देवलोके देवगति पा-14 यो ॥ जल लेश्ने श्राव्यो मुज तात, चोर तणी दीठी ते घात ॥ ६॥ मुजने घरनो फुर्ज दीधो, पोते देहरे काजस्सग्ग कीधो ॥ माणस जे मूक्यांतांबाने, तेणे वात कही राजाने ॥ ७॥ शेठ तणे घर मूडा धारो, कोप्यो नृप कहे जश्ने मारो ॥ दोड्या सेवक मारण सही, अवधिनाण दीठो सुर तवही ॥ ७॥ थाए सौनो डे उपकारी, ॥१४॥ Sa
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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