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________________ धर्मपरी खंग ७ ॥१४॥ बहीए श्राव्यो श्रावासरे ॥ रा०॥रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजयनी पूरवा था- शरे ॥ राण श्रा० ॥१३॥ उठा. श्राव्यो वासर थाम्मे, यमदं सना मोकार ॥ तेमज नूप पूज्यो तुरत, तस्कर तणो विचार ॥१॥ देव न लाध्यो एम सुणी, नरपति कीधो रोष ॥ परजाने कहे सांजलो, मारो नहीं कांश दोष ॥२॥ कथा कही मुज वंचीयो, सात दिवस पर्यंत ॥ दंड चोरनो देश्ने, एहनो करशं अंत ॥३॥ कहे माजन यमदंमने, चोर तणुं कोइ चिह्न ॥ देख्यु होय तो दाखवो, मत करजो नय मन्न ॥४॥ ढाल सातमी. बांगरीयानी बारे गरवडो-ए देशी. वयण सुणी महाजन तणुंरे, एम बोले यमदंडरे ॥ परज सुणो ॥ अहिनाणी लाथाएया पबीरे, श्यो करशो तस दंगरे॥१०॥ १॥ राजसुतादिक सहु कहेरे, जो होशे नरराजरे ॥ ५० ॥ चोर तणो दंड एहनेरे, करशुं मूकी लाजरे ॥ प०॥ २॥ निश्चय एहवो जाणीनेरे, काढ। त्रणे वस्तरे ॥ ५० ॥ सजा माहे मेली ॥२४॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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