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________________ पारधी तेमी पूडीयुंजी, कुरंग घणां ने केथ ॥ वन तेणे तेह बतावीयुंजी, चाख्यो राजा तेथ ॥ सु॥५॥ व्याध वेष राये परीयोजी, पारधीनो परिवार ॥ पीडे मृगने पापीयोजी, व्याप्यो मोह अंधकार ॥ सु० ॥६॥ खणी अजामी खांतशुंजी, फोमी सरोवर पाल ॥ बंधन सघले मांगीनेजी, काल्यां मृगनां बाल ॥ सु० ॥७॥ पारधीने परशंसतोजी, हमहड नूप हसंत ॥ कोश्क पंमित देखीनेजी, गाथा एम नणंत ॥ सु०॥6॥ गाथा-सबदिसंजहिं सलीलं । सवारणं च कुवसंथन्नं ॥ . राया य सर्यवाहो । तमियाणं कर्ज वासो ॥१॥ मूरख नृप समज्यो नहींजी, बुद्धि बमी संसार ॥ धन पाम ते सोहेबुंजी, समजण दोहिली नर नार ॥सु॥ए॥ पूढे वली दिन पांचमेजी, तिणहीज परे नूपाल ॥ श्राज कथा में सांजलीजी, कहे वलतुं कोटवाल ॥ सु० ॥ १० ॥ देश नेपाल पाटलीहै पुरेजी, वस्तुपाल महीपाल ॥ कवित कला शुकि लहेजी, जाणे बालगोपाल ॥ सु N॥ ११॥ जारतीनूषण तेदनोजी, मंत्रीश्वर कहेवाय ॥ राय कवित तेणे फुःखीयोजी, बेग महा कविराय ॥ सु० ॥१२॥रीसे नूपति धमहड्योजी, मंत्री बंधाव्यो ताम ||
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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