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________________ - उदा. कार्तिकेय नंदन कहे, सांजलो मोरी माय ॥ काम निवार्यो कोणे नहीं, एहवो जे अन्याय ॥ १॥ श्रघट मान एणे कीयो, को नहीं हुवो तव धर्म ॥ पापी अन्यायी जीवमा, ते बांधे निज कर्म ॥२॥ मात कहे सुत सांजलो, मुनिवर जे गुरुराय ॥ तेणे घणी परे प्रीव्यो, तोही कीधो अन्याय ॥३॥ ढाल नवमी. वर वाघेलो वामीए उतर्यो-ए देशी. कार्तिकेयरे कहे माता सुणो, किहां ने मुनिवर वली तेहरे ॥ जननी बोलेरे सुतजी सांजलो, जैन मुनिवर हता जेहरे॥साजन सहुकोरे सुणजो एक मना ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ तुज पिताएरे ते निरघाटीया, श्हांथी गया दक्षिण देशरे ॥ जिहां तुज तातनी आण फरे नहीं, लोक सहु जिनधर्म शीशरे ॥ सा ॥२॥ मात कहो ते श्राचार केहवो, जेहनो श्रावो निरमल धर्मरे ॥ राजा अन्यायेरे जेणे वारीयो, दूषण रहित करे ने कमरे ॥ सा ॥३॥ कुमरने मात कहे तुमे सुणो, चोवीश परिग्रहथी ते
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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