SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मपरि० ॥ ११ ॥ | हसतां दास्य विलास ॥ एए ॥ इम अनुदिन ते बेहुने, बाऊयो बोहोलो नेह ॥ कांति कला वाधी घणी, रूप नोपम देह ॥ १० ॥ ढाल सातमी. सीता ते रूपे रुडी, जाणे थांबा माले सूडी हो सीता श्रति सोहे-ए देशी. एक दिन आव्या जण चार, मथुरां नगरीथी तेणी वार हो ॥ जावे जवि सुणो ॥ नूतमति तेरुवा सारु, विनति करे श्रावी ते वारु हो | जा॥ १ ॥ पधारो मारे देश, | सेवा चाकरी करशुं विशेष हो ॥ जा० ॥ अश्व अजामेध थाशे, मोटो जगन जाग कहेवाशे ॥ जा०॥२॥ तुम विना ते कोण जाणे, तेथे कारण मेल्या टाणे हो ॥ जा०॥ तिहां श्राव्या लोक अनेक, कोण जाणे जगन विवेक हो ॥ जा० ॥ ३ ॥ नूतमतिए दा वाली, साच वेपनी दीधी ताली हो ॥ जा० ॥ नारीने तेमी एकांते, शिखामण | दे जली जाते हो ॥ जा०॥४॥ घर मांही पोढजो राते, लंबन लागे कोइ वाते हो ॥०॥ ते तुमे मत करो काम, फरशो दरशो मां कोइ ठाम हो ॥ जा० ॥ ५ ॥ जोवनमां जोखम लागे, मोह वाधे मदन बहु जागे हो ॥जा॥ श्रति घणुं शुं कहुं तुमने, मास चार थाशे तिहां श्रमने हो ॥जा० ॥ ६ ॥ देवदत्तने बोलाव्यो, घर ए तुमने जलाव्यो हो ॥ खंग १ ॥ ११ ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy