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________________ धर्मपरी० ॥ ११६ ॥ करशो सुजाण ॥ शैव सांख्य बौध जैनना, जे जाणो ते बोलो वाण ॥ जा० ॥ ५ ॥ कोण देश कोण तुम गाम बे, कोण जातिना कोण गोर ॥ कोण कारण इहां श्रावीया, सत्य कहो मांगीने धूर ॥ जा० ॥ ६ ॥ जोगी रूपे खगपति ते जणे, सांगलो द्विजवर तुमे सार ॥ वाद विवाद मे जाएं नहीं, केवा कहीए शास्त्र प्रकार ॥ जा० ॥ ७ ॥ आपणपो वेष मे धर्यो, गुरु नवि दीवो कोय जोय ॥ गाम गम कुल जाति हुं कहुं, सुजो द्विजवर वातो सोय ॥ जा० ॥ ८ ॥ बड़ा खंग ती ए में कही, पहेली | ढाल ए सोय ॥ रंग विजयनो शिष्य ते एम कहे, नेमनी आशा पूरण होय ॥ जा० ॥ ए ॥ ढाल बीजी. या चित्रशाली या सुख सज्यांरे - ए देशी. गुर्जर देश वंशवाडे सुणो गामरे, जरवा वासो वसे अजिरामरे ॥ म तपो पिता मांगण जरवाकरे, बालां बाली गामर बहु धामरे ॥ १ ॥ बालां गारुरनो घणो डुजाणोरे, सकल कुटुंब सुखीयो तुमे जाणोरे ॥ श्रमो गाडर रक्षक गोवालरे, गामर सहु राखुं वनमालरे ॥ २ ॥ एक दिवस पिता मांदो पमीयोरे, पुत्र सांजलो श्रमने ज्वर खंभ ६ ॥ ११६ ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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