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________________ पंक धर्मपरीके ॥ सु ॥ १ए ॥ पांचमा खंम तणी कही, ढाल दशमी हो सुणजो नर नारी के॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय हो नित्य नित्य जयकारी के ॥सु० ॥॥ ॥१४॥ उदा. रामचंड सीता प्रते, कहे एक दिन वात ॥ निंदा करे बे लोक सहु, कलंक चमावे नात ॥१॥ तेहनो साच करो तुमे, पावकमां द्यो पग ॥ निंदा न थाये नातमां, वातो आवे वग ॥२॥ सीता कहे साचु कडं, लोकापवाद न जाय ॥ साहेब करशे ते तासही, थानारो ते थाय ॥३॥त्रणसें हाथ खाइखणी, नयों खेर अंगार ॥ राजे राणा, नेगा मख्या,श्राव्या जोवा नर नार ॥४॥ ना धोश् सीता सती, पहेरी उत्तम चीर॥ समरण करी साहेब तणो, संनार्यों श्ष्ट वीर ॥५॥ पावक मांही प्रवेश कयों, श्रगन फीटी थयो नीर ॥अचरिज पाम्यां श्रादमी, धन धन एहनी धीर ॥६॥धन धन एहना शीलने, धन धन एहनी जाति ॥धन एहना मावित्रने, धन कुंवरी सुजाति ॥७॥ पावक मांहींथी नीकली,प्रगटी अगननी काल ॥ सती सती मुख सहु कहे, देव वाणी ततकाल ॥ ॥ पुष्पवृष्टि यश् तदा, जयजयकारनी वाण ॥ चरम शरीरी ते अडे, मुक्तिरूप निरवाण ॥ ए॥ ॥१९ ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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