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________________ धर्मपरी सायर केम उतराय ॥ सात मास ने नव दिने, सायर पाज बंधाय ॥६॥-सीताने से खंग ५ गयो, रावण लंका मांय ॥ फुलवामीयावासमां, राखी ले तेणे गय ॥७॥ नित्य आवे ॥११०॥ सीता प्रते, पूरे वारंवार ॥पट्टराणी था' करी, मान वचन निरधार ॥७॥ ढाल आठमी. बेमले जार घणो ने राज-ए देशी. जनक सुता हुँ नाम धरावं, राम अंतर जामी ॥ पल्लो श्रमारो डोमी दे पापी, कुलमां लागशे खामी ॥ मुजने अमसो मां जो राज, नाहलीयो उहवाशे ॥ए श्रांकणी ॥१॥ मरु महीधर गम तजे जो, पथ्थर पंकज जगे ॥सायर जोमरजादा मूके, पांगलो अंबर पुगे ॥ मु० ॥२॥ तोपण तुं सांजलरे रावण, निश्चे हुं शील न खंडं॥ प्राण श्रमारा परलोके जाये, तोपण सत न बंडं ॥ मु॥३॥ हुँ धणीयाती पीयु गुणराती, हाथ डे माहरे बाती ॥ रहे अलगो न चयुं तुज वयणे, कां कुल वाये काती ॥ मु ॥४॥ कोण मणिधरनी मणि लेवाने, हश्मे घाले हाम ॥ सतीय संघाते स्नेह धरीने,|||॥१०॥ कहो कोण साधे काम ॥ मु० ॥५॥ कहो परदारा संग करीने, श्राखो कोण उगरीयो॥ INउंडं तुं तो जोय आलोची, सही तुज दहामो फरीयो ॥ मु॥६॥ अग्निकुंममा निजी
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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