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________________ धर्मपरी ॥१०॥ मुख जाय ॥ एक बाण नाखे थके, सहस्र संख्या थाय ॥ ४ ॥ वासुदेव बल धागले, खंम ५ सहस पचवीश देव ॥ एता शरीरना देवता, रक्षा करे नित्यमेव ॥५॥ जे श्रा. युध लश्कर तणां, लक्ष्मण उपर आवे ॥ ते देवता रदा करे, ते सर्वे निष्फल थावे ॥६॥ जे लक्ष्मण नाखे तदा, जे उपर ताणी बाण ॥ तेहने सहस गमे सही, जाये तेहना प्राण ॥ ७॥ खरषण राजा तिहां, मरण गयो ततकाल ॥ तेणे अव-16 सर लक्ष्मण तव, मनशुं थ उजमाल ॥ ॥ सिंहनाद करूं जो हवे, कटक जाये सवी नाज ॥ एम चिंतवी तेणे कर्यो, सिंह समो आवाज ॥ ए॥ ते अवसर रामे तिहां, सुणीयो सिंहनो नाद ॥ सीता मूकी एकली, श्राव्यो करवा वाद ॥ १०॥ बे|| | नाइ मली एकग, मार्यों काढ्यो पूर ॥ नागे ले लश्कर वेगलो, जीतनां वाग्यां तूर ॥ ११ ॥ चंदनखा उतावली, गश्रावणनी पास ॥ श्राकुल व्याकुल थाती थकी, मूकती मुख निःश्वास ॥ १२ ॥ कदेवा लागी नाश्ने, मार्यो मुज जरतार ॥ मुख \ ॥१०॥ देखाडे लोकमें, लाजे नहीं लगार ॥ १३ ॥ रावण उठ्यो सांजली, पुफक लेश विमान ॥ अद्भुत रूप नवो करी, आव्यो सीता गम ॥ १४ ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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