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________________ तेहने दीयु ए ॥ जव मन जाणे तेह तणुं, तव लांच श्रापे ते धन घj, एणी परे बुद्धि बले काम निगमे ए॥४॥ लुब्धनी देहे उपन्यो, पाप प्रनावे रोग उपन्यो, औषध अनेक कर्यां तोही नवि टले ए ॥ नूमि घाल्यो बुब्धदत्त जेहवे, श्रायुकर्म तुम हतुं तेहवे, आरतध्यान पाम्यो ते तरफडे ए ॥ ५॥ पुत्र कहे पिताजी सांजलो, चिंतातुर कांश टलवलो, दान पुण्य जे कहो ते कीजीए ए ॥ वृक्ष पापी ते कहे ताम, धर्म दान नहीं मुज काम, पुत्र तमे सांजलजो जे हुँ कहुं ए ॥६॥ नेम नांग्यो एक मुज तणो, कार्य करो तुमे अति घणो, तो वली प्राण जाये सुख माहरो ए ॥ सकल लोक | दमावीया, तुंगन दंग नहीं फावीया, लांच श्रापीने एणे हुं वारीयो ए॥७॥ लाजे काज एहनो सिको, राजदंग शिरमें नवि कीधो, गो महिषी धण कण एहने के बहु। ए॥ माहरी बुद्धि इश्डे धरो, बकनी वात रखे कंशए करो, रोठ तो श्राण देखें बु मुज तणी ए॥ ॥ प्राण गया पली मुज वली, वस्त्र श्रृंगार पहेरावो वली, पाबली रात्रि मुज देश उन्नो राखजो ए ॥ तुंगना क्षेत्र सेढे रही, मुज हस्ते काढी ग्रही, || गाय नेंस घाली तुमे उलवी रहो ए ॥ ए ॥ कणवी आवी मुज लमयमशे, जीव रदित अंग नूमि पमशे, बूम पामी तुमे लोक बहु मेलजो ए ॥ मुज तातनो कीधो
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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