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________________ घरे ॥ ॥ मूरख लोक मल्या २ ए सहु खारथी, ताम्र नाजन खोयुं ताम एणी परे हारश्री ॥ महानारतनी वात विस्तारे थायशे, साचं खोटुं परीक्षा करीने जायशे॥ए॥ __ श्लोक-गतानुगतिको लोको, न लोकः परमार्थिकः ॥ पश्य लोकस्य मूर्खत्वं, हारितं ताम्रजाजनम् ॥१॥ पवनवेग सुणो मित्र विचार जे एटला, मिथ्या वचन विचार कहं लक केटला ॥ जिनशासननो धर्म साकर सम जाणीए, खाइए जे वारे तेह मीठो परमाणीए ॥१॥ थाठ करमना वारक देवता ते खरा, तरण तारण गुरु नाम कहीए जे नरा ॥ केवली नाषित धर्म कहीए ते खरो, अवर मिथ्या जर्म तेहने कां वरो ॥ ११॥ सूत्र सिद्धांत ने शास्त्र जाख्यां जे जिन तणां, तेहमां विनय विवेक गहन अर्थ घणा ॥ जिनवाणीनी वात साची करी मानीए, तो सरशे तुम काज शिवसुखने जाणीए ॥ ॥ १५ ॥ सांजली पवनवेग कहे पावन थया, हिज सघला मली ताम कदे संदेह गया। जगमां जोतां जेने धरमनो आधार , नूला जे नवि लोक तेहने ए पार ॥ १३ ॥ हे ना तुम वात हश्ये मारे वसी, पाम्यो शुद्ध श्राचार फिकर नहीं कसी ॥ मनोवेग तुमे नाश् साचा बो सही, एटला दिवस गम मुजने रही नहीं ॥ १४ ॥ ब्राह्मण
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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