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________________ क० ॥ पीहर ते रही कुण, करे वात तेहनी ॥ मा० ॥ क० ॥ ७ ॥ नव मास वाडा, पूरण थवा यवीया ॥ सा० ॥ ५० ॥ जमवा कारण तापस, घणा तेमावीया ॥ मा० ॥ घ० ॥ विश्वन्नूतिए घरणी, करी जमामीया ॥ मा० ॥ क० ॥ सनमुख उजो विनति, करे हाथ जोमीया ॥ मा० ॥ क० ॥ ७ ॥ नारी तणो तिहां तात पूबे तापस जणी ॥ मा० ॥ ५० ॥ जवितव्यतानो विचार, कहो बुद्धिना धणी ॥ मा० ॥ क० ॥ कहे तापस तमे सांजलो, वात कहुं नवी ॥ मा० ॥ वा० ॥ तुम देश मांहीं डुकाल, थाशे सही संजवी ॥ मा० ॥ था० ॥ बार वरसांनो काल, सही करी जाणजो ॥ मा० ॥ स० ॥ पेट मांहींथी में सुणी, वाणी परमाणजो || मा० ॥ वा० ॥ हुं हवे रहुं पेट मांहीं, डुकाल एम लागीए ॥ मा० ॥ ० ॥ बोल्या तापस वयण, थाशे एम पालीए ॥ मा० ॥ या० ॥ ॥ १० ॥ सुकाल यया पढी नीकलुं, तो सुखी थाइए || मा० ॥ सु० ॥ जो नीकलुं काल मांहीं, तो मातुं याइए ॥ मा० ॥ तो० ॥ ते तापस तेणी वार चाव्या परदे शमां ॥ मा० ॥ चा० ॥ बार वरस फरी याव्या, नवनवा देशमां ॥ मा० ॥ न० ॥ ११ ॥ | दीधो यादरमान, श्राहार घणो पीयो ॥ मा० ॥ ० ॥ पाम्या दरख | सुकाल नाम थापीयो ॥ मा० ॥ सु० ॥ उदर मांहींथी वात, सुपी में तेहवे ॥ पार, मा० ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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