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________________ renायाvaanwuratvdeos INमी जात ॥ सा ॥ १३ ॥ चोरे चोवटे तुं रमेरे, अन्य जाणे सहु लोक ॥ सा ॥ नरतार बापमो पाधरोरे, नाक कान बेदे बीजो रोक ॥ सा ॥ १४ ॥ तव खरीने चमी। रीसमीरे, सबलो मुसल कर लीध ॥ सा० ॥ प्रहार मेट्यो पग नपरेरे, चरण माबो खोमो कीध ॥ सा ॥ १५॥ मारो पग तेंत्नांजीयोरे, तारो पग कयों में नंग ॥ साग साट साटुं वदयु आपणुंरे, हवे बेहु शोक्योमां रंग ॥ सा ॥ १६ ॥ पग बेहु कूटी नांजीयारे, नारी में दुहवी न लगार ॥ सा ॥ मोटो मूरख मुज समोरे, को नविली दीसे गमार ॥ सा० ॥ १७ ॥ चोथा खंड तणी कहीरे, ढाल बीजी सुविशाल ॥सा॥ रंगविजय शिष्य नेमनेरे, होजो मंगल माल ॥ सा ॥ १७ ॥ उदा. तव त्रीजो एणी परे जणे, सांजलो बुद्धि निधान ॥ मुज सरीखो मूरख नहीं, श्री गुरु केरी आण ॥१॥ नागर लोक पूढे तदा, कहे मूरख तुज वात ॥ जेम न्याय विचारी कीजीए, विनोद होये विख्यात ॥२॥ ढाल त्रीजी. नाह गयो तो वामीएरे, लाव्यो चंपानो फूल । नानो नाहलोरे--ए देशी. smananewBERasawwa सम
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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