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________________ उदा. तव मूरख एक बोलीयो, शाशिष दीधी मुनिराज ॥धर्मवृद्धि मुजने कही, सरशे N अमारो काज ॥१॥ बीजो कहे मुजने कही, त्रीजो बोले तेणी वार ॥ चोथो कहे। मूजने कह्यो, श्राशिष मुनि गुणधार॥२॥मांहोमांहे वलगे घj, पाठा श्राव्या तिणे गम, मुनिवर तिहां दीग नहीं, न्याय कारण अन्य ग्राम ॥३॥ बुद्धिवंत व्यवहारीया, तेहने ज मध्या ताम ॥ न्याय करो शेठ श्रम तणो, महा मूरख अम नाम ॥॥ तव शेठे ते पूर्वीया, के शी मूरखा अंग ॥ चार मध्ये एक बोलीयो,मूरख मूरखाश्चंग॥५॥ ढाल बीजी. टुंक अने टोमा वचेरे, मेंदीनां दोय रूंख, मेंदी रंग लागो-ए देशी. न मारे मंदिर दो नारी अरे, चंगी निरंगी सुखखाण ॥ साजन सांजलो॥एक दिवस सूतो सज्यारे, थयो निखावश आण ॥ सा ॥१॥ तव नामनी यावी बेहुरे, सूती माबे जमणे पास ॥ सा ॥ एकेको हाथ मारो ग्रहीरे, हृदय उपर करी श्रास सा॥२॥ तेणे अवसर मुज मंदिररे, दीपक हतो एक चंग ॥ सा ॥ तव उंदर वलग्यो आवीरे, दीवट ताणी चाल्यो रंग ॥ सा ॥३॥ मुज उपर उंचो रहीरे, माSHEDनाम
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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