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________________ धर्मपरी खंम ३ ॥ ६॥ मूत्र अशूचि नंमारनो, पुगंध गंध उतपात॥३॥ इहां नीकलवू नवि घटे, वदने थाये बहु वर्ष ॥ नानिकमल जे विष्णुनी, तेमां काढुं देह तो हर्ष॥४॥पहेलो काज विचाजारीए, तेहने नावे को लाज ॥ विष्णु नाजिने बिजे करी, ब्रह्मा नीकल्या श्राज ॥५॥ डंटी वलग्यो केश अंगनो, धाता न लहे लवलेश ॥ ब्रह्मा तिहां वलगी रह्या, माटु थया वलगे केश ॥६॥ नानिकमल रचना करी, पांखमी अष्ट प्रकार ॥ उपर श्रासन पूरीयुं, नाम कमलासन सार ॥७॥ दिवस तेहज थादे करी, पदम जात तेह नाम॥ नाभिकमले हरि उपन्या, कथा जाणो ब्रह्मानी ताम ॥७॥ माया मुनि हसी बोलीयो, विप्र विचारी जोय ॥ वेद पुराणे कथा कही, साची जूठी होय ॥ए॥ विप्र वचन तव, बोलीया, पुराण प्रसिद्धो एम ॥सर्व शास्त्र मांहीं कडं, खोटुं कहीए केम ॥१०॥ ढाल बही. घमी एक द्योने राणी सुंबरो, सुंबरो दरियोरे न जाय-ए देशी. मनोवेग पवनवेग जणी, सामुंजोश मित्त॥ मित्र वचन मुज सांजलो, एक मनमां धरी चित्त ॥ साजन सहुको सोनलो ॥ ए आंकणी ॥१॥जेम कमंगल सरसव जेटले, मध्ये जग मायंत॥ तो कमंमल मोटा मांहीं, गजश्रमे केम न पेसंत ॥सा० ॥२॥ जेम चौद ॥ ६॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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