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________________ खंग ३ immediaWARA धर्मपरी उदा. ॥ ४॥ जिनचरणदास बोल्यो जति, ब्राह्मण सुणजो वात ॥ अगस्त्य ऋषिवर अनिनवो, पुराण प्रसिद्ध ए ख्यात ॥१॥ उठ हस्तीनी देहमी, सायर समीपे वास ॥ तप जप ध्यान धरे बहु, सामग्री राखे पास ॥२॥ जोली माजन पात्रने, स्नाने शुरू करे गात्र ॥ सायर तीरे बेसी करी, जोय मेव्यां सवि पात्र ॥३॥ चाख्यो करवा स्नान ते, समुनी लागी लेहेर ॥ जल कलोले लीधी सहु, उपन्यो झषिने जेहेर ॥४॥ पूजा सामग्री माहरी, पापी जलधिए लीध ॥ तो संहारं एहने, तव तिहां सागर पीध IN ॥ ५॥ एक च में एटलो, पीधो सागर सर्व ॥ केटलोक काल पेटमा रह्यो, हुँ कहुँ मूकी गर्व ॥ ६॥ हिज सहु को तमे सांजलो, पुराण प्रसिको ताम ॥इंडिमां समायो जो सही, तो हुँ हस्ती बेहु उगम ॥ ७॥ अगस्त्य ऋषिए पीधो सहु, वहाण सायर मठ ॥ एह वात मानो खरी, तो माहरी वातो सच्च ॥ ॥ विप्र बोल्या तव सहु मली, पुराणमां वात मनाय ॥ तुम वयण केम लोपीए, लाग्या तुमारे पाय ॥ ए॥ माया मुनि तव बोलीयो, ब्राह्मण सुणजो वात ॥ अपर वात पुराणे कही, सनिलजो विख्यात ॥१०॥ । लusaReal ४ ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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