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________________ धर्मपरी ॥३॥ ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा, ऋषि सहस्र अव्याशीरे ॥ कर जोडी युधिष्टर नणे, खंग ब्रह्मा कहोने विमासीरे ॥ वे ॥४॥ धर्म केही परे उपजे, अमे करूं ते काजरे ॥ ॥७३॥ ब्रह्मा कहे युधिष्टर सुणो, जाग मांगो महाराजरे ॥ वे ॥५॥ अश्वमेधे तुरंगम हणो, पुंडरिक मांहे हाथीरे ॥ गोमेध पुण्य गायज हणी, अजामेध श्रज साथीरे ॥ वे ॥६॥ राजसूय महा जागमां, नरपति होमो साररे ॥ विविध जीव जागे कह्या, तेहनो पुण्य नहीं पाररे ॥ वे ॥७॥ श्लोकः-गोसुवे सुरनिर्हन्यात्, राजसूये च जुजम् ॥ अश्वमेधे हयं हन्यात्, घुमरिके च हस्तिनम् ॥ १॥ MT तव राजाए प्रारंजीयो, राजसूय जागनो नामरे ॥ दैत सघला रोषे जढ्या, लांजी जागनो गमरे॥ वे ॥॥ युधिष्टर राजा तव नणे, थर्जुन सुणो तमे नारे॥शेषनाग तमो पातालथी, साते ऋषि वेगे जारे॥ वे ॥ ॥ते थावे तो कारज सरे, नहींतो विणसे जागरे॥अर्जुने तव बाण मूकीयु, फोड्यो नूमि नागरे ॥ वे ॥१०॥ बाण जिला ॥७३॥ पेगे अर्जुनो, पाताल गयो तामरे ॥ नाग रिषिने सहु का, पधारो खामि गामरे | Nm वे ॥ ११ ॥ शेषनाग झषि सातशें, विचारी करी साररे ॥ धर्म काम करशुं अमे, 2. FEAR தேகததேன் a mwwwwwnemamaHATurmeena SHARE meramanar
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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