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________________ धर्मपरिणअनोपम अधिक उबांहेरे ॥जी॥॥ घेवर मोतीचूर ने लासु, खाजां खुरमां ने पूरीरे|| ॥ साटां फीणी हेसमी मरकी, जलेबी मेसुब चूरीरे॥प्री० ॥३॥सेव सुंहाली लापसी ताजी, खीर खांड श्रांबां केलारे ॥ अखोड जाख ने खजुर खारेक, सुगंधी शाको नेलारे ॥प्री० ॥४॥ कुरदाली दधि दूध उपर, घृत जानी परनालरे॥ सालेवां पापड तली वमी, जमी उठ्या तत्कालरे ॥ प्री० ॥५॥ पान सोपारी लवींग एलची, मुख तंबोल दीधां वारुरे ॥ कपुर वास्यां नीर मंगावी, शौच थया चालवा सारुरे ॥ प्री०॥६॥चंदन कपुर केशर घोली, अंग विलेपन कीधरे॥कुसुममाला पहेरी कोटे, मुहूरत वेला लीधरे ॥ प्री० ॥७॥साज बेश्ने सामग्री कीधी, विमानमा बेसी तामरे ॥ श्राव्या ततक्षण पामली परिसर, दी मनोहर ठामरे ॥ प्री० ॥ ॥ उतरी हेग विमान मांदेथी, पदेयां वस्त्र ते साररे ॥ माथे मुकुट काने कुंमल, कोटे मोतीनो हाररे ॥ प्री० ॥ए ॥ बांहे बाजुबंध बेरखा बांध्या, मुषिका कटी कंदोरारे ॥ पाये मोजडी सोल शणगारे, वशीकरण पासे मोहोरारे ॥प्री०॥ १० ॥एकने मस्तक खडनो जारो, बीजाने मस्तक काठीरे ॥ हाथ कोहामो दातरमा लेश, बीजा हाथमा लाठीरे ॥प्री० १नात दाल.
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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