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________________ खंग३ cannamasumaana धर्मपरीप्रिते मनोवेग नणे, सानलो विप्र सुजाणरे ॥ वाद विद्या श्रमे नवी लह, केवां शास्त्र पुराणरे ॥ म० ॥ ५ ॥ जतिवेष श्रापणे पाली, गुरु नथी अम तणे शिषरे ॥ पाट-IN ॥६ २७ ॥ ॥ लीपुर जोवा श्रावीश्रा, निगुरा उइए हिज धिषरे ॥ मं० ॥६॥ कोप करी हिज बोलीश्रा, सुणो मुनि मूढ गमाररे ॥ वाद विवाद जाण्यो नहीं, केम कीधोनेरी प्रहाररे ॥ म ॥ ७ ॥ घंटारव बहु वार कयों, सिंहासन बेग केमरे ॥ नवी गुरु विना चेला सांजल्या, नगर को प्रेमरे ॥ म ॥ ॥ माया जति कहे सांजलो, हेलाए वजाव्या घंट नेरीरे ॥ सहजे सिंहासन चांपीयां, न गमे तो बेसीए फेरीरे ॥ म॥ ए ॥ विप्र वचन एम चरे, दपणक मोटा धुताररे ॥ मुनि नणे वामव तुमे सुणो, सत्य केतां लहीए माररे ॥ म ॥ १० ॥ ते उपर कथा कहुँ, सांजलजा सज साथरे ॥ कोश्क गामे एक शेठ रहे, घरमां बहु आथरे ॥ म० ॥ ११ ॥ पुत्र बेहु शेग्ने अडे, जिनपाल अने जिनदत्तरे ॥ गुरु मढ्या जिनदत्तने, ली, मकित सतरे ॥ म॥१२॥ साचुं बोले वणजतां, कूम कपट नवि राखेरे ॥ साचाबोलो सहु कहे, नगर लोक एम जाखेरे ॥ म ॥ १३ ॥ हाटे बेगे नित्य रहे, थावे लोक अनेकरे ॥ साचो जाणी आवे घणा, बोले विनय विवेकरे ॥ म ॥१४॥ नाममायापOSSAnicaNRIBE ॥ ६ ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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