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________________ धर्मपरी ॥६६॥ ढाल बावीशमी. बेनी प्रीत पूरव पुण्ये पामीए-ए देशी. अज्ञानी मूढे श्राचर्यु, चतुर्मुख ब्रह्मा तेहहे ॥ साजन ॥ ब्रह्मविद्या नामे जाणजो, जिनशासन सत्य एहहे ॥ सा ॥ १॥ सुणजो वात सोहामणी॥ ए श्रांकणी ॥ जिन वांदी रुख घरे गयो, गौरीशुं अति बहु नेहहे ॥ सा ॥ सांजलो काम शुं शुं करे, विद्याबले शंकर तेहहे ॥ सा० ॥ सु० ॥ २॥ ससरोसालो घणुं पीमीया, माने गणे नहीं केहहे ॥सा॥चाताए पारवतीने पूबीयु,हरथी केम रहे विद्या बेहदेसा॥सु॥३॥ गौरी कहे ना सांजलो, शरीर राखे विद्या पूरहे ॥ सा ॥ काम सेवा शंकर करे, तप विद्या रहे पूरहे ॥साम्॥सु॥४॥ नगनी संतोषी वचन रसे, कूड रच्यो उपायहे | ॥ सा० ॥ हर गौरी शंकर समे, खड्ने हण्यां बेहु कायदे ॥ सा० ॥ सु० ॥५॥ ईश्वर अधोगति पामीयो, विद्याए विडंबीया लोकहे॥सा॥मरकीए माणस मरे, राजनुवन प्रजा शोकहे ॥ सा० ॥सु० ॥६॥निमित्त जो निमित्ति कहे, विद्या संतापे सारहे|| T ॥ सा ॥ आचरण जेने बेहु मुश्रां, लिंग उपर जलाधारहे ॥सा०॥ सु० ॥॥ शिखामण एहवी करे, विद्या संतोषाए चंगहे ॥ सा ॥ तव लोके सहु तिम कर्यु, जोनि an
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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