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________________ खंग धर्मपरी ॥६ ॥ पेहेरी उजमालिकारे लाल ॥ १॥ श्रावी वन विशाल, बीजे दिने बेहु बेनमीरे लाल॥ टाटुं सोकनुं साल, चेलणाए चिंतव्यु तिण घमीरे लाल ॥ १२ ॥श्रम विसरीयां बा. चेलणा कहे ज्येष्टा सुणोरे लाल ॥ उतावलां तुमे जाश, आजरण लावो श्रम तणारे । लाल ॥ १३ ॥ लेवाने तव जाम, ज्येष्टा जव पानी वलीरे लाल॥श्रावी सहीयरने वगम, चेलणा तव श्रावी मलीरे लाल ॥१४॥ अपहरी अनयकुमार, लाव्यो निज पुर गममारे लाल ॥श्रेणिक चेलंणा दोय. परणाव्यां जबरंगमारे लाल ॥ १५॥श्रानरण ज्येष्टा लेय, श्रावी तेणे गमे वहीरे, लाल ॥ चेलणाने वन मांहीं, जो जाम देखे। नहींरे लाल ॥ १६ ॥ आवी जिनने गेह, दुःख करी पाली वलीरे लाल ॥ एणे मुज देहनो नेम, परणेवा संयम नलीरे लाल ॥ १७ ॥ ज्येष्टाए तव जाम, दीक्षा लीधी। रुयमीरे लाल ॥ शास्त्र शीखी ताम, जशोमती बाई पासे खडीरे लाल ॥१०॥ ज्येष्टा-1 नी जे वात, सातकी राजाए सांजलीरे लाल ॥ हुवो नोगनो घात, मुज देवी बोली हतीरे लाल ॥ १॥श्राव्यो ते मन मांहीं, परणवानो नेम करीरे लाल ॥ दीक्षा लीधी त्यांहिं, समाधि गुप्ति गुरु पय धरीरेलाल॥२०॥उंगणीशमीकही ढाल, खंम बीजानी ए। सहीरे लाल ॥ रंगविजयनो शिष्य, नेमविजय कहे में कहीरे लाल ॥१॥ ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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