SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खंम धर्मपरीचाल्यो कन्या काज ॥ हेमाचलने जश् मख्यो, सांजल तुं गिरिराज ॥ १४ ॥ तुम कुमरी रुयडी, शंकरने द्यो तेह ॥ वर कन्या ए योग्य बे, महादेवशुं करो नेह ॥ १५ ॥ हेमा॥ ७॥ चल कहे नारद सुणो, पारवती में दीध ॥ लगन लेश झषि चालीयो, हरने जाण तव कीध ॥ १६ ॥ ढाल सत्तरमी. चरणाली चामुंमा रण चढे-ए देशी. ईश्वर वर तव सज थक्ष, वृषन पलाणी चमीयोरे ॥ नेरव नूत जोटींग घणां, जान सहित पंथ पडीयोरे ॥सुणजो साजन वातडी॥ ए श्रांकणी ॥१॥ शंकर सासु डे मीनका, वर देखी होश जांखीरे ॥ मीनका कहे सहु सांनलो, मुज बेटी श्हां कुणे नाखीरे ॥ सु० ॥२॥ जग जीरण गरढो ए अबे, चमवानो बलद ने बांगोरे ॥ गाम गम एहने नहीं, मात पिता नहीं रांडोरे ॥ सु०॥३॥जात ने जात को नवि कहे, जस्म विनूषित देहरे ॥ कोटे डे साप बीहामणो, उढण गजचर्म तेहरे ॥ सु ॥४॥ नरमुंग माला गले अडे, नांग धंतुरो ते खायरे॥हस्त कपाल कांखे कोली, शिर जटा किन्नरी वायेरे N सु ॥५॥ एणे जमा मुज खप नहीं, जो देशो तो मरशुं श्राजरे ॥ जल मांहे ॥॥ TabT.
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy