SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ -] मोच योग्य अधिकार दिगम्बर-मान लो कि वस्त्रधारी मुनि मोक्ष में चला जायगा जबतो गृहस्थ भी केवली होकर मोक्ष में चला जायगा। प्राचार्य. कुंद कुंद स्वामी ने तो समय प्राभूत गा० ४३८, ४० में गृहस्थलींग में मोक्ष की मना की है । तो क्या गृहस्थ मोक्ष में जाता है ! जैन--हाँ ? यद्यपि ऐसा क्वचित ही बनता है, परन्तु ऐसा होने में तनिक भी शंका का स्थान नहीं है । जैन दर्शन अनेकान्त दर्शन है। जैन दर्शन भाव चारित्र वाली आत्मा की मोक्ष मानता है, शरीर की या वस्त्रों की नहीं । दिगम्बर शास्त्र भी इस बात के गवाह हैं। प्रा० कुंद कुंदजी समय प्राभूत गा० ४३६, ४०, ४१ में भाव प्रात्मा को ही मोक्ष बताते हैं गा०४४३ में गृहीलींग ममत्व की मना करते है। दिगम्बर-श्रावक छटे गुण स्थान को भी नहीं पाता है तो फिर मोक्ष को कैसे पा सकता है ! जैन--मूछीवाला छटे गुण स्थान को न पावे, यह तो ठीक बात है, किन्तु श्रावक ही नहीं पावे यह कैसे माना जा सकता है ? दिगम्बर प्राचार्य तो गृहस्थ को भी छटे सातवें गुणस्थान का अधि. कराि मानत है । ये फरमाते हैं कि पंचम गुण स्थानवर्ति श्रावक ध्यान दशा में अप्रमत गुणस्थान को पाता है और अंत. मुहूर्त के बाद में छटे में आता है। लिखा है कि फिर यही सम्यग् दृष्टि जब अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय को (जो श्रावक के व्रतों को रोकती है ) उपशम कर देता है तब चौथे से पाँचवें देश विरत गुण स्थान में प्राजाता है। इस दरजे में श्रावक
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy