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________________ [ ७० ] दिगम्बर हमारे पास जिनोक्त असली बाणी तो है नहीं, सब छदमस्थ प्राचार्य कृत ग्रन्थ ही हैं । इसके लीये हमारे पं० चम्पालालजी और पं० लालारामजी शास्त्री लिखते हैं कि- . । वर्तमान काल में जो ग्रन्थ हैं सो सब मूलरूप इस पंचम काल के होने वाले प्राचार्यों के बनाये हैं । इत्यादि। (चर्चा सागर चर्चा-२५० पृ० ५०३) अर्थात् उपलब्ध सब दिगम्बरशास्त्र तीर्थकरो ने नहीं किन्तु प्राचार्यों ने बनाये हैं, मगर इन ग्रंथो में सीर्फ नग्न प्रादि के बारे में जोर दिया है, सब बातों में भी वैसा ही करना जरूरी था, मान ऊपरोक्त अपवाद वगैरह सब बातो का सुधार करना लाजमी था। न मालूम उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया? फल स्वरूप हमारे अाजकल के नये विद्वान तो उन ग्रन्थों को भी उदाकर नये ग्रन्थ बनाने को तैयार हुए है। - ता० १८२-१९३८ के संघ अधिवेशन में पाँच वां प्रस्ताव भी हो चुका है कि_ "भा० दिगम्बर जैन संघ का यह अधिवेशन प्रस्ताव करता है कि-समाज में फैली हुई दण्ड व्यवस्था की वर्तमान अव्यवस्था को दूर करने के लिये निम्नलिखित (७) विद्वानों की एक समीति कायम की जाय जो कि शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर इस अव्यवस्था को दूर करने के लिये समाज के लिये उपयोगी दंड व्यवस्था का रूप निश्चित करे” इत्यादि। माने पुराने दिगम्बरीय ग्रन्थ अप्रमाणिक हैं। जैन--जहाँ कृत्रिमता है वहाँ रहोबदल चली आती है, "विवेक पतितानां तु भवति विनिपातः शतमुखः' इस न्याय से
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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