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________________ (दि० प्रा० सोमसेन कृत त्रिवर्णाचार .) ५-जैन राजा सुमित्र ने स्वयं अपनी रानी को कहा कि वह जाकर, उसके एक मित्र की काम वासना की तृप्ति करे, साथ ही न जाने पर उसे दंड देने की धमकी भी दी गई। ( पद्म पुराण स० १२ प्रत्युत्तर पृ० ६८, १०३) ६-वारिषेण ने अपनी पहिले वाली बत्तीस ३२ पनियों को बुलाया और अपने सामने खड़े हुए एक शिष्यको उन्हें अपने घर डाल लेने के लिये कहा। (दि० आराधना कथा कोष, प्रत्यु० पृ०१८) श्राप वास्तव में देख चुके हैं कि ये सब अनाच्छनीय विधान श्वेताम्बर शास्त्रो के नहीं किन्तु दिगम्बर शास्त्रों के हैं। - इसके अतिरिक्त प्रायश्चित के जरिये शोचा जाय तो प्राय: श्चित्त विधान दोनों शास्त्रो में एकसा ही उपदिष्ट है । __शास्त्रकारों ने परिस्थिति की विषमता और दोषों की तरतमता को भिन्न २ रूपस बता कर प्रायाश्चित दान को एक दम विशद कर दिया है, इस हालत में श्वेताम्बर या दिगम्बर किसी भी जैन मुनि को मांसभोजी या काम भोगी बताना । यह सिर्फ निन्दा रूप ही है। ... दिगम्बर--उत्सर्ग और अपवाद दोनों सापेक्ष मार्ग है. कर को महेनजर रखकर प्रवृति करना चाहिये मगर असा अंग नहीं करना चाहिये। : जैन-"मुनिको मन, बचन और काया से करस, दाना और अनुमोदन देमा इनके त्याग रूप प्रतिक्षा है, प्रामात कर भी इनका पालन करना चाहिये यह जमर्ग: मार्म और
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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