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________________ [ ६ ] श्वेताम्बर - ठीक है, जो श्रविरति या अजैन होंगे वे मांसाहारी होंगे इसमें आश्चर्य क्या है ? आज भी अविरति जैन या अजैन अग्रवाला अभक्षभक्षी हैं, माने कंद मूल भक्षी है, विदल भक्षी है वैसे ही उन यादवों के लिये समझना चाहिये । "दिगम्बरी राजा सुदास का मनुष्य मांस भक्षण भी ऐसा ही चिचित्र दृष्टान्त है । इसके अलावा त्रिवर्णा चार पृ० २७२ श्लो० ८२ में मांसाहार का जिक्र है जिसमें पांच पल भक्षण तक का कोई दंड नहीं है, यह सब दिगम्बर मांसाहार का विधान है । दिगम्बर संघ के आद्य आचार्य कुन्द कुन्द स्वामी के लीये भी कुछ ऐसी ही विचित्र घटना है । 1 1 दिगम्बरी जैन हितैषी भा०५ श्र० ६ पृ० १७ में "धर्म का अनु· चित पक्षपात" लेख छपा है । उसमें वि० सं० १६३६ में दि० काष्टा संघी श्रा० “भूषण' लिखित दिगम्बरीय "मूल संघ का कुछ इतिहास" दिया है, जिसका सारांश यह है "एक बार काष्ठासंघी अनंतकीर्ति नाम के श्राचार्य गिरिनार यात्रार्थ गये, वहाँ उन्होंने पद्म नन्दी ( कुन्दकुन्द स्वामी ) आदि निर्दयी पापी कापालिकों को देखा, और उन्हें संबोध श्रावक के व्रत दिये । आचार्य ने उसकी (कुंद कुंद स्वामी का ) नाम " मयुरश्रृंगी” रक्खा, बाद को उसने मंत्र वाद से "नंदीसंघ" चलाया और अपना 'पद्मनंन्दी' नाम प्रसिद्ध किया । एक समय उज्जैन में 'उसने गुरु से विवाद किया और पत्थर की शारदा को बलात् बुलवा दिया । तब उसका बलात्कार गए और सरस्वती गच्छ प्रसिद्ध हुआ । आदि बाद में उसने मंत्र सिद्धि के निमित्त एक मयूर को मार डाला, तब मयूर मर कर व्यंतरदेव हुआ । उसने बहुत 沪 उपद्रव मचाया तथा त्रासदिया, अन्त में उसके' कहने से 'मयूर पिच्छ' धारण कर पिंड छुडाया, उसदिन से मूल 'मयूर संघ' हुआ संघ का नाम .
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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