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________________ [ ४६ ] व्यवहृते सति । स्यात् भवेत् । एकस्मिन् भुक्ते एकतराहारे भुक्ते सति । चतुर्विधे चतुष्प्रकारे अशने पाने खाद्ये स्वाद्येव । उपवासः क्षमणं, प्रदातव्यः प्रदेयः षष्ठमेव षष्टं । यथाक्रमं यथासंख्यं एकास्मिन्नाहारे क्षमणं, चतुर्विधाहारे षष्ठ मिति ॥ ३३ ॥ ( दिगम्बरीय प्रायश्चित्त चूलिका श्लो० ३३ ) यदि मुनि न वस्त्र रक्खे, न आहार पानी लावे, तो यह रात्रि भोजन और तज्जन्य प्रायश्चित का प्रसंग कैसे हो सकता है ! भूलना नहीं चाहिये कि - दिगम्बर शास्त्र में दिगम्बर मुनि के लिये ही यह प्रायश्चित बताया है । ४ - रत्ति गिलाण भत्ते, चउविह एक म्हि छट्ठखमणाओ उवसग्गे सठाणं, चरियापविट्ठस्स मूलमिदी ॥ २६ ॥ टीका- रात्रौ व्याधियुते चतुर्विधाहारे षष्ठं । एक विधाहारे भुक्ते उपवासः । उपसर्गे रात्रिभोजी पंच कल्याणं । रात्रौ चर्याप्रविष्टः मूलं गच्छति । " न तस्य पंक्ति भोजनम्" । इतिषष्ठं व्रतम् ॥ २६ ॥ ( छेद शास्त्र प्रायश्चित्त संग्रह ) माने-दिगम्बर शास्त्रों के अनुसार उनके मुनि रात्रि भोजन का प्रायश्चित लेवे यह बात पात्र होने के पक्ष में जाती है । यहाँ उस मुनि के लिये “पंक्ति भोजन के त्याग रूप दंड” बताया 1 इससे भी सिद्ध है कि भ्रमण पात्र को रक्खें उनमें आहार पानी लावे और एक पंक्ति में बैठ कर आहार करें, दोषित साधु इस पंक्ति में बैठने का हकदार नहीं है । यह पंक्तिभोजन भी पात्र रखने के पक्ष में है । ५-- पंचानां मूलगुणानां रात्रिभोजनवजनस्य च पराभियोगात् बलादन्यतम प्रतिसेवमानः पुलाको भवति । ( तत्वार्थ सूत्र ) माने रात्रि भोजी श्रमण पुलाक है। जैन निर्गन्थ पात्र द्वारा
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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