SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २३ ] दूषण रूप नहीं है । मूर्च्छा हो तो शरीर भी परिग्रह है अतः मूर्छा के अभाव में यह सब अपरिग्रह रूप हैं इतना तो हमें मंजूर है । जैन -- यदि दिगम्बर मुनि उपाधि रखने पर भी अपरिग्रही हैं तो श्वेताम्बर मुनि भी उपधि रखने पर अपरिग्रही हैं । और श्री तीर्थकर भगवान भी छै पर्याप्ति की वर्गणा रूप पर द्रव्य को लेते हैं मगर वे अपरिग्रही ही हैं । कारण ! मूर्च्छा नहीं है । इसी प्रकार मुनि भी अमूच्छित रूप से उपाधि रक्खें तो अपरिग्रही ही है | दिगम्बर -- जी ! मुनि जी कुछ भी करें उससे हमारा कोई भी वास्ता नहीं है सिर्फ इतना होना चाहिये कि वे वस्त्र धारी न हों, नंगे हों । वास्तव में दूसरी २ चीज परिग्रह हो, या न हों, मगर वस्त्र तो परिग्रह ही है । आ० कुन्द कुन्द दूसरी उपधि की आशा देते हैं मगर वस्त्र का नाम लेकर निषेध करते हैं देखिये प्रमाण १ - पंचविह चल चायं, खिसियां दुविह सजमं भिक्खू । भावं भाविय पुव्वं, जिणलिंगं म्मिलं सुद्धं ॥ ८१ ॥ ( आ० कुन्दकुन्द कृत भावप्राभृत गा० ७९ । ८१ ) २- जे पंच चल सत्ता ॥ ७६ ॥ ( मोक्ष प्राभृत ) ३--पंचच्चेल च्चाओ ॥ १२४ ॥ क - प्रति ॥ अंडज बुंडज रोमज, चर्म च वल्कज पंच चेलानि ॥ परिहृत्य तृणज चेलं, यो गृहणीयान्न भवेत् स यतिः । ( आ० देवसेन कृत, भाव संग्रह गा० १२४ ) ४ --- यदि मुनि दर्प और अहंकार से वस्त्र ओढले तो पंच कल्याणक, यदि अन्य कारण से ओढले तो महाव्रतभंग हो जाय ।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy