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________________ [ २१ ] ..२-अल्प एव लेपो भवति, तद्वरमपवादः ॥ ३-देशकालज्ञस्यापि बाल वृद्ध श्रान्त ग्लान त्वानुरोधेना ऽऽहार विहारयो रल्पलेपभयेनाऽप्रवत मानस्याऽतिकर्कशाऽऽ चरणीभूय क्रमेण शरीरं पातयित्वा मुरलोकं प्राप्योद्वांत समस्त संयमाऽमृतभारस्य तपसोऽनवकाशतयाऽशक्य प्रतिकारो महान् लेपो भवति, तन्न श्रेया नपवादनिरपेक्षः उत्सर्गः । ४-असंयत जन समानी भूतस्य... ''महान् लेपो भवति, तन्नश्रेयानुत्सर्ग निरपेक्षोऽपवादःसर्वथानु गम्यस्य परस्पर सापेक्षोत्सर्गापवाद विजूंभित वृत्तिः स्याद्वादः ॥ ३० ॥ .. याने साधु काल क्षेत्र के बिचार से प्रवृति करें जिसके लेने छोडने और वापरने में छेद न हो ऐसी उपधि को स्वीकारे । "ममत्व न हो तब उपधि अप्रतिषिद्ध माना गया है", उपधि निषेध का कारण "ममता" ही है । बाल बृद्ध श्रमित और ग्लान मुनि मूलच्छेद न हो इस बात को लक्ष्य में लेकर स्वयोग्य प्रवृति करें । मुनि देशकाल श्रम क्षमा और उपधि को जानकर आहार तथा विहार में प्रवृत्ति करें। ___ इस प्रवृति में अल्पलेपी के लिये चर्तुभंगी होती है जिसमें अपवाद निरपेक्ष उत्सर्ग और उत्सर्ग निरपेक्ष अपवाद ये दोनों भांगे वर्ण्य माने गये हैं । अति कर्कश आचरण से मरकर असंयमी देव बनना यह भी अपबाद निरपेक्ष एकान्त हठ रूप होने से अश्रेय मार्ग ही है। उत्सर्ग और अपवाद से सापेक्ष बर्ताव रखना यानि स्याद्वाद पूर्वक प्रवृत्ति करना यही शुद्ध मुनि मार्ग है। .. .. __(भा. कुन्द कुन्द कृत, प्रवचन सार चरणानुयोग चूलिका) श्रा० कुन्द कुन्द इन पाठों से मुनिओं को उपधि रखने की आम इजाजत देते हैं । भूलना नहीं चाहिये कि ममत्व होने से ही.
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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