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________________ सं देते हैं। वे :बताते हैं कि-'भगवान् महावीर स्वामीको के 'शु० १० को केवलज्ञान हुआ, परन्तु उनका 'दिव्यध्वनि' ६६ दिन तक नहीं खीरा, अतः उनका प्रथम उपदेश श्रा० कृ०१ को हुआ।' माने-सर्वज्ञ होने के पश्चात् ६६ दिवस तक तीर्थकर भ० महावीर स्वामीका उपदेश ही नहीं हुआ। श्वेताम्बर शास्त्र तो 'तीर्थकरनामकर्म' के उदयके कारण केवल प्राप्ति के दिवस से ही भ० महावीर स्वामीका उपदेश दान मानते हैं। साथ साथमें यूं भी मानते हैं कि-पहिले दिन मनुष्य समोसरन में न आ सके, देव आये थे कि जो अविरति होते हैं अत: उस समय का भ० महावीरस्वामीका उपदेश निष्फल गया, बादमें दूसरे ही दिन वै० शु० ११ को भगवान् अपापा में पधारे, वहां उन्होंने उपदेश दिया, जीव और कर्म आदिकी शंकाए हटवाकर इन्द्र भूति गौतम आदिको दीक्षा देकर 'गणधर' बनाये, त्रिपदीका दान किया और चतुर्विध संघकी-तीर्थकी स्थापना की। इस प्रकार सर्वज्ञ होने पर भी तीर्थकर भगवान् की देशना निष्फल जाय, यानी दिगम्बरीय कल्पना के अनुसार वे उपदेश ही न देसके-मौन रहे, यह 'अघटन घटना' तो है ही। दिगम्बर-भगवान् महावीर स्वामीका दिव्यउपदेश ६६ दिन तक नहीं हुआ उसका कारण 'वहां गणधर को उपस्थीति नहीं थी,' वही है ऐसा दिगम्बर शास्त्रमें बताया गया है, मगर यह ठीक जचता नहीं है। क्योंकि-दिगम्बर मानते हैं कि भगवान् ऋषभदेवकी वाणी विना गणधर के ही खोरी थी, जिस तरह वह खीरी थी उसी तरह भ० महावीर स्वामी की वाणी भी विना गणधर के खीर सकती थी, और तीर्थकर भगवान भी अमुक खास श्रोता के अधीन है नहीं, फिर ६६ दिनतक उसकी वाणी क्यों न खीरी? इस प्रश्नका कोई उत्तर नहीं है, अतः इस घटना को भी आश्चर्य तो मानना ही चाहिए । जैन-यहां १२ पर्षदा की अनुपस्थीति, महावंत, अणुव्रत आदिका अस्वीकार, और तीर्थकी स्थापना नहीं होना, यह 'आश्चर्य है। x .जीवाजीव विसय संदेह विणासणमुवगय __वद्धमाण पादमूलेण इंदभूदिणा वहारिदो । ... (पखंडागम पु. १. पृ. ६४)
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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