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________________ १३१९ इसी प्रकार देवद्वारा गर्भ परावर्त्तन होना तो संभवित है । मगर इस विषय में ओर भी कई बाते विचारणीय है । जैन – इस गर्भ परावर्त्तन से तत्कालीन भारतीय विज्ञान कितना विकसित था उसका पत्ता चलता है । गर्भ परावर्त्तन यह कल्पित गप्प नहीं है आजके डॉक्टर भी ऑपरेशन द्वारा गर्भ परावर्त्तन करके आलम को आश्चर्य चकित करते हैं। थोडे ही वर्ष पहिले की बात है कि एक अमेरिकन डोक्टरने एक भाटिया ज्ञातिकी गर्भवती जनाना के पेटका आपरेशन किया था। शुरू में डॉक्टरने गर्भवतीबकरी के पेटको चीरकर उसके बच्चेको वोजलीके सन्दूक में रख दिया और जनाना का पेट चीर कर उसके बच्चेको बकरीके गर्भस्थान में रख दिया, बाद में उस जनाना के पेटका आपरेशन: किया। ऑपरेशन ख़तम होते ही उस बच्चेको जनानाके पेटमें और बकरीके बच्चेको बकरी के पेटमें पुनः स्थापित कर दिये । दोनोंको टांके लगा दिये और दोनोंको जिन्दे रक्खे । समय होने पर उन दोनोंने अपने२ बच्चेको जन्म दिया । इस प्रकार नडियाद, मीरत, वगेरह स्थानों में कई करामती ऑपरेशन होते रहते हैं । आजका यह विज्ञान भी गर्भपरावर्त्तन विषयक सब शंकाओ को रफे दफे करा देता है । यह भी मार्के की बात है कि- तीसरे महिने का गर्भ पींडरूप बनकर उठाने योग्य होता है, अतः हरिणगमेषीने भगवान् को ८३ वे दिन त्रिसला के उदर में रखा है । और त्रिसलारानी के उदर में जो कन्या गर्भ था उसे उठाकर देवानंदा के उदरमें ला रक्खा है ।* * जुदा जुदा प्राणीओमां गर्भ विकास काळ जुदो जुदो होय छे. देडकामां पंदर दिवसनो गर्भ विकास काळ होय छे अने देडकानी मादा पाणीमां इंडां मुके त्यारथीज पंदर दीवसमां ते इंडानी अंदर गर्भनो विकास थाय छे अने त्यारे नानी माछली जेवुं हेंडपोल जन्मे छे गीनीपीगमां एकवीस दीवसनो गर्भ विकास काळ छे. ससला अने खीसकोली पांत्रीस दीवस, बिलाडीमां पंचावन दीवम, कुतरामां बासठ दीवस, सिंहमां त्रण महिना, डुक्करमां चार महिना,
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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