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________________ १२३ मर गये, और मुनि दान के प्रभाव से दुसरे भव में विद्याधरोके पुत्र-पुत्री बने। वहां भी इन दोनों का एक दूसरे से ब्याह हुआ और राजा रानी बनकर आनन्द सुख भोगने लगे। इधर कौशाम्बी का शेठजी शेठानी के वियोग से तड़पता रहा और आखीर में दिगम्बर मुनि बन गया, वह मरकर देव बना और अनेक देवांगना से भोग भोगने लगा। उसने एक दिन अवधिज्ञान से विद्याधर के वैभव में राजा और शेठानी को देखा, देखते ही उसे गुस्सा आया। उसने पूर्वभवके वैरका बदला लेने के लीये इन विद्याधरों को धमकाकर उठाकर भरतार्ध के चंपा नगर में ला पटके। और यहां के राजा-रानी बनाये । इनको हरि नामका लडका हुआ, जिसकी संतान-परंपरा चली, वही 'हरिवंश' है।" - यह हरिवंशपुराण में कहा हुआ “हरिवंश" का इतिहास है। मगर इसे आश्चर्य माना नहीं है। जैन-श्वेताम्बर और दिगम्बर में साहित्य निर्माण के भेद के कारण इस कथा में भी भेद पड़ गया है। श्वेताम्बर शास्त्र में हरिवंश की उत्पत्ति इस प्रकार है। _ "एक राजाने कीसी शालापति की खूबसूरत पत्नी वनमाला को उठाकर अपने अंतःपुर में रख ली, शालापति पत्नी के वियोग से पागल बन गया, एक दिन उसे देखकर राजा और वनमाला 'हमने यह बड़ा भारी पाप किया है' ऐसा पश्चाताप करने लगे और उसी समय ये वीजली से मरकर हरिवर्ष क्षेत्र में युगलिक रूप में उत्पन्न हुए। ___ इधर शालापति भी इनकी मृत्यु देखकर 'इन पापीओं को पाप का फल मिला' एसा शोच ते ही अच्छा हो गया और साधु बनकर मरकर व्यंतर हुआ। वह इन्हें अवधिज्ञान से देखकर विचार करने लगा कि-अरे ये पूर्वभव में सुखी थे, हाल युगलिक रूप से सुखी है और मरकर देव ही होवेंगे वहाँ भी सुखी होवेंगे मगर ये मेरे पूर्वभवके शत्रु हैं अत: इनको दुःखी ओर दुर्गति के भागी बनाना चाहिये। ऐसा शौचकर व्यन्तरने अपनी शक्ति से इनको छोटे शरीरवाले बनाकर यहां ला रक्खे, राज्य दिया और सातों कुव्यसन शिखलाये । ये भी पाप में मस्त रह कर मर गये और नरकमें गये। इनकी संतान परंपरा चली, वही 'हरिवंश' हैं।"
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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