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________________ "वर्तमान में कहीं कहीं एकसो बीश वर्षसे भी अधिक आयु सुनने में आती है, सो हुंडावसर्पिणी के निमित्तसे है। इस हुंडाकाल में कई बातें विशेष होती हैं। जैसे-चक्रवर्ति का अपमान, तीर्थकर के पुत्रीका जन्म और शलाका पुरुषों की संख्यामें हानि।" (जैन जागरफी भा० १ पृष्ट १६) माने-यह भी एक आश्चर्य घटना है। जैन-महानुभाव ! जो जो अटल नियम है . इसमें विशेषता होने से 'अघटन घटना' मानी जाती है। किन्तु ऐसी २ साधारण वातो में अघटन घटना नहीं मानी जाती है। इसके अलावा जिसके जीमें आया वह कीसीको भी अघटन घटना का करार दे देवे, वह भी कीसी भी सम्प्रदाय को जेबा नहीं है। वास्तव में प्राचीन शास्त्र निर्माता जिसे आश्चर्य रूप बता गये हैं उसे ही आश्चर्य मानना चाहिये। - दिगम्बर-दिगम्बर शास्त्र में भी १० आश्चर्य बताये हैं, किन्तु जहां तर्क का उत्तर नहीं पाया जाता हैं इसे भी हम आश्चर्य में दाखिल कर देते है, इस हिसाब से उपर की बात आश्चर्य में शामील हो जाती हैं। जैन-इस प्रकार तो ओर २ भी अनेक बातें दिगम्बर मत में आश्चर्यरूप मानी जायगी। जैसा कि १ किंग एडवर्ड कॉलेज-अमरावती के प्रो. श्रीयुत हीरालालजी (दिगम्बर-जैन) लिखते हैं कि-दिगम्बर जैन ग्रंथोके अनुसार भद्रबाहु का आचार्यपद वी. नि. सं. १३३ से १६२ तक २९ वर्ष रहा, प्रचलित वी. नि. संवत के अनुसार इस्वी पूर्व ३९४ से ३६५ तक पडता है, तथा इतिहासानुसार चंद्रगुप्त मौर्यका राज्य इस्वी पूर्व ३२१ से २९८ तक माना जाता है, इस प्रकार भद्रबाहु और चंद्रगुप्त के कालमै ६७ वर्षाको अन्तर पडता है। ( माणिकचंद्र जैन ग्रंथमाला-बंबइ का जैन शिलालेख संग्रह, पृ० ६३, ६४, ६६) दिगम्बर विद्वानो के मतसे आ. भद्रबाहुस्वामी व सम्राट चंद्रगुप्त समकालीन नहीं है. पर भी दिगम्बर समाज में ये दोनों एककालीन माने जाते हैं। वह भी आश्चर्य है। २ वीरनिर्वाण संवत् ६८३ में अंग ज्ञान का विच्छेद हुआ है अतः बाद में कोई अंगशानी नहीं होना चाहिये, तो भी बाद के
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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