SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - जैन-इस असार संसार में पुत्र पिता को, पिता पुत्र को, पति पत्नी को, पत्नी पति को, माता पुत्र को और भाई भाई को मारते हैं, पूर्व कर्म के कारण ऐसा बनता है, तो इसमें आश्चर्य भी क्या है ? । राज कुटुम्बो में तो भाईको भाई ही मारे यह तो सहज बात- मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि 'जिसको कोई न पहोंचे उसको पेष्ट पहोंचे माने-दूसरेसे अजेय व्यक्तिकी समता उसका भाई या पुत्र ही कर सकता है। भरत चक्रवर्तिके सामने गुड़ा टेकने वाला बाहुबलजा भी उसका भाई ही था, यह आम बात है। फिर भी इनका मामला तो दूसरा ही है। पूर्वकर्म के कारण वासुदेव की मृत्यु भाई के हाथ से होनेवाली थी, जरा. कुमारने भी इस कातिल पापसे बचने के लीये पुरी कोशिश की वनमें वास भी किया, किन्तु होनहार मीटती नहीं है। जराकुमारने हरिण के भ्रमसे बाण मारा, और उसी ही बाण प्रहारसे वासुदेव की मृत्यु हुई। यहां न द्वेष था न युद्ध हुआ मगर भावी भाव बलवान है; आयुःकर्म के समाप्त होने पर मृत्यु हुई है किन्तु उस मृत्यु का निमित्तकारण 'जराकुमार'ही है। दिगम्बर-६३ शलाका पुरुष को उत्तम देह के हिसाब से 'अनपवर्त्य' आयुष्य होता है, वे दूसरे के हाथसे कैसे मरे ?।। जैन-अनपवर्त्य आयुवाले जीव आयु के पुरे होने से पहिले मरते नहीं है, वे आयु के पुरे होने पर ही मरते हैं। मगर भूलना नहीं चाहिये कि उनकी मृत्यु जिस २ निमित्त से होनेवाली है उस २ निमित्त से ही होती है। शलाका पुरुष भी इस चुंगल से पर नहीं है । दृष्टान्त भी मीलते हैं कि-सुभूम चक्रवर्ती पानीसे मरा, सब प्रतिवासुदेव वासुदेव के शस्त्रप्रहारसे ही मरे, इत्यादि २। दिगम्बर-दिगम्बर मानते हैं कि-२४ तीर्थकर १२ चक्रवर्ती ९ वासुदेव ९ प्रतिवासुदेव और ९ बलदेव ये ६३ 'शलाकापुरुष' हैं। और ६३ शलाकापुरुष ९ नारद ११ रुद्र २४ कामदेव १४ कुलकर २४ जिनेन्द्रपिता और २४ जिनमाता ये १६९ 'पुण्य पुरुष' कहलाते हैं। (६० मूलचन्द्रजी संगृहीत जैन सिद्धान्त संग्रह पृ० १०)
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy