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________________ १०५ अब भ० महावीर स्वामी के दाह ज्वर आदि के लीये शोचा जाय तो वहां मांसक का अर्थ पाक ही समुचित है। देखो(१) स्निग्धं उष्णं गुरु रक्तपित्तजनकं वातहरं च मांसं॥ सर्व मांसं वातविध्वंसि वृष्यं ॥ मुरघा का मांस उष्णवीर्य है। इत्यादि वैद्यक वचनो से यहां मांस सर्वथा प्रतिकुल ही माना जाता है . (२) प्रोचीन काल में फलगर्भ और बीज के लीये मांस और अस्थि शब्द का विशेष प्रयोग किया जाता था, जिनागम और वैद्यक ग्रन्थो में ऐसे अनेक प्रयोग उपलब्ध हैं। जैसा कि बिण्टं स-मंसकडाहं एयाई हवंति एगजीवस्स ॥९१॥ टीका-'वृन्तं समंसकडाह'ति-समांसं सगिरं तथा कटाह एतानि त्रीणि एकस्य जीवस्य भवन्ति-एकजीवात्मकानि एतानि त्रीणि भवन्तीत्यर्थः॥ (-श्री पनवणासूत्र पद १. सूत्र २५, पृ. ३६, ३७) से किं तं रुक्खा ? रुक्खा दुविहा पन्नता, तं जहा-एगट्ठिया य बहुबीयगा य । से किं तं एगट्ठिया ? एगट्ठिया अणेगविहा पन्नत्ता, तं जहा निबं ब जंबु कोसंब, साल अंकोल पीलु सेलू य । सल्लइ मोयह मालुय, बउल पलासे करंजे य ॥१२॥ पुत्तंजीवय ऽरिटे, विभेलए हरिड़ए य भिल्लाए । उंबेभरिया खीरिणि, बोधव्वे धायइ पियाले ॥१३॥ पुइय निंब करंजे, सुण्हा तह सीसवा य असणे य । पुण्णाग णाग रुक्खे, सिरिवण्णी तहा असोगे य ॥१४॥ जेयावण्णे तहप्पगारा । एएसि णं मूला वि असंखिज जीविया, कंदा वि खंधा वि तया वि साला वि पवाला वि पत्ता पत्तेयजीविया, पुष्फा अणेगजीविया फला एगढिया।से तं एगट्ठिया । ( पन्नवणा सूत्र पद-१ सूत्र-२३ पृ. ३१ जीवाभिगम सूत्र प्रति० १, . सूत्र २० पृ. २६)
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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