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________________ ८१ उस औषध का निरागभाव से आहार लेने से भगवान् को भी रोग की शान्ति हुई । वगेरह वगेरह | इस पाठ में जो १ दुवे कवोय सरीरा २ मजारकड़ए और ३ कुक्कुड़ मंसप शब्द हैं उनके लिये विसंवाद है । क्यों कि साधारण तथा उन निरपेक्ष शब्दो का स्थूल अर्थ यही निकलता है कि- भगवान् महावीर स्वामीने मांसाहार किया । जैन - इस विषय में गौरता से विचार करना चाहिये । किन्तु उस के पहिले ओर एक बात का सफाई कर देना चाहिये कि - 'भगवान् महावीर के मुख से २५०० वर्ष पहिले मागधी भाषामें उच्चरित हुए इन शब्दो को या उनके अर्थ या भावार्थ को अनेक संस्कारो से ओतप्रोत ऐसी प्रचलित भाषा के अनुकुल बना लेना', यह भी कुछ विचारणीय समस्या है । अतः निम्न बातों को भी शोच लेना आवश्यक है (१) जिनागम की रचना | और अर्थ शैली (२) प्राकृत - संस्कृत भाषाके अनेकार्थ शब्द | (३) प्रचलित अनेकार्थ शब्द | जीनका ब्योरा इस प्रकार है । (१) जिनागम की रचना और अर्थ शैली के लिखे प्रमाण मिलता है कि इह चार्थतोऽनुयोगो द्विधा, अपृथक्त्वाऽनुयोगः पृथक्त्वाऽनुयोगश्च । तत्राऽपृथक्त्वाऽनुयोगो, यत्रैकस्मिन्नेव सूत्रे सर्वे एव चरणकरणादयः प्ररूप्यन्ते अनन्तगम पर्यायार्थकत्वात् सूत्रस्य । पृथ्क्त्वा - ऽनुयोगश्च यत्र क्वचित् सूत्रे चरणकरणमेव, क्वचित्पुनर्धर्मकथेव वेत्यादि । अनयोश्च वक्तव्यता जावंति अजहरा अजहुत कालियानुओगस्स । तेणारेण पुहुत्तं कालिय सुय दिट्टिवाए य ॥ ७६२।। (श्रीहरिभद्रसूरिकृत दशवैकालिकसूत्र टीका ) अर्थात् आर्यवज्रस्वामी तक जिनागम के अपृथक्त्व माने चार चार अनुयोग थे-गमा पर्याय और अर्थ अनन्त निकलते थे, सामान्य विशेष मुख्य गौण और उत्सर्ग अपवाद से सापेक्ष अनेक ११
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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