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________________ Be दिगम्बर - श्वेताम्बर मानते हैं कि - सिद्धार्थ राजाने भगवान् महावीर स्वामी को पढने के निमित्त मदरसा में बैठाये मगर उन्होंने वहाँ जाकर उसी समय पंडित के संशयो का समाधान किया, और जनताको उनके ज्ञान का परिचय मिल गया । दिगम्बर मानते हैं कि यह बात बनी नहीं हैं, तीर्थंकर को मदरसा में पढने को भेजे जाय यह बात असंभवित है । जैन - माता-पिता अपनी फर्ज मानकर या व्यामोह से पुत्र का लालन-पालन, शोभावृद्धि, गुण बढाने के लीये शिक्षापाठप्रदान, विवाहोत्सव वगेरह करते हैं । वैसे सिद्धार्थराजाने भी भगवान् महावीर को मदरसा में भेजे । तीर्थंकर भगवान् भी गंभीर होते हैं अतः वे अपने मुख से यूं नहीं कहते हैं कि- मैं ज्ञानी हूं मुजे मदरसा में मत भेजो, इत्यादि । बात भी ठीक है - जैसा भगवान् नेमिनाथजी का विवाह का प्रसंग है वैसा यह लेखशाला का प्रसंग है । दिगम्बरं मत से तो तीन ज्ञानवाले भगवान् ऋषभदेव भी गौचरी का अंतराय होने पर भी छै महिने तक गौचरी के लिये फिरे थे, यह क्यों ? 1 जब लेखशाला का प्रसंग तो यहां माता-पिता के अधीन है, जो होना सर्वथा संभवित ही हैं। दिगम्बर - श्वेताम्बर मानते हैं कि भगवान् महावीर स्वामी का विवाह "समर वीर" राजा की पुत्री " यशोदा " से हुआ था, उनको उससे "प्रियदर्शना” नामक एक कन्या भी हुई जिसका विवाह भगवान् महावीर स्वामीने अपना भानजा " जमाली" नामक राजपुत्र के साथ कर दिया । उसको भी "शेषवती” नामक कन्या. हुई, बादमें राजपुत्र जमालीने भगवान की पास मुनिपद का स्वीकार किया । वगेरह वगेरह । दिगम्बर शास्त्र इन बातों को मानते नहीं है, वे तो साफर कहते हैं कि भगवान् महावीर आजीवन ब्रह्मचारी थे । जैन — भगवान् महावीर स्वामीने विवाह किया था, यह बात तो दिगम्बर शास्त्रो से भी सिद्ध है, जिस के प्रमाण ऊपर बता दिये गये है ।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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