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________________ देते हैं, जो वस्त्र आजीवन काल तक भी रहता है। दिगम्बर वैसे मानते नहीं है। जैनदिगम्बर संप्रदाय की नीव ही एक दिगम्बरत्व से गडी हुई है अतः दिगम्बर विद्वान दिगम्बर मुनि को ही मुनि मानते हैं फिर तीर्थकर या केवली भगवान् को वे सवस्त्र कैसे मान सके ?। मगर एकान्त को छोडकर अनेकान्त दृष्टिसे शाचा जाय तो तीर्थकर के लिये भी वस्त्र सिद्ध है। मुनि और केवली सवस्त्र भी होते हैं, उसका विशेष समाधान पहिला "मुनि उपाधि अधिकार "में कर किया गया दिगम्बर-श्वेताम्बर मानते हैं कि-भ० ऋषभदेवने इन्द्रकी विनति से ५ मुष्ठि लोच न करके ४ मुष्टि लोच किया । जैन-ठीक बात है वास्तव में तीर्थंकर के केश की वृद्धि न होना यह अतिशय देवकृत है, तो इन्द्र की इच्छा से वे केश रक्खे जावे उसमें अनुचित क्या है ? और असंभवित भी क्या है ?। मथुरा के कंकालीटिलासे प्राप्त दो हजार वर्ष पूर्व की भ० ऋषभदेव की प्रतिमाओं के कंधे पर केश उत्कीर्ण है, अतः उनके ४ मुष्टि लोच की वात सप्रमाण है। दिगम्बर-श्वेताम्बर मानते है कि भगवान् ऋषभदेव और महावीर स्वामी अनार्य देश में भी विचरे थे। जैन-मनुष्यका जन्म और मृत्यु मनुष्य क्षेत्र में ही होते हैं, वैसे तीर्थकरो के पांचो कल्याणक आर्यभूमि में ही होते हैं मगर उसका यह अर्थ नहीं है कि वे अपनी सीमासे बहार भी न जाय ? मनुष्य मानुष्योत्तर पर्वत से बहार भी जाता है वैसे तीर्थकर आर्य देश के बाहिर भी विचरते हैं। साधारण तया आर्य ओर अनार्य ये परस्पर सापेक्ष नाम हैं, अतः आर्यखंड में आर्य और अनार्यो का समकालीन अस्तित्व भी संभवित है और इस हालत में वहां विहार होना भी समुचित है। भगवान् शान्तिनाथ वगेरह भी दिगविजय के निमित्त अनार्य देश में गये थे। यह भी भूलना नहीं चाहिये कि दिगम्बर शास्त्र
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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