SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६१ तीर्थकर का जन्म तो जब होगा तब होगा किन्तु अप मगर उनके माता पिता उनके आनेके बाद ही नहीं ने जन्म से ही आजीवन तक निहार ही न करे, यह कैसी विचित्र मान्यता है ? अस्तु । ऐसी मान्यता तो सिर्फ सम्प्रदायमें ही विश्वास योग्य होती है, वह उतनी ही सीमावाली होती है । दिगम्बर - श्वेताम्बर मानते हैं कि तीर्थकर भगवान् गर्भमे आये तब उनकी माता १४ स्वप्न देखते हैं १ गय २ वसह ३ सीह ४ अभिसेय५ दाम ६ससि ७ दिणयरं ८ झयं ९ कुम्भं । १० पउमसर ११ सागर १२ विमाण भवण १३ रयणुच्चय १४ सिहिं 112 11 ( कल्पसूत्र ) - तीन नारक और वैमानिक देवलोक से आया हुआ जीव तीर्थकर हो सकता है । जैसा कि होज्जद णिव्बुदि गमणं, चउत्थी खिदि णिगतस्स जीवस्स । णियमा णित्थयरतं, णत्थि त्ति जिणेहिं पण्णत्तं ॥ ११८ ॥ तेण परं पुढवीसु, भयणिज्जा उवरिरमा हु णेरइया णियमा अणंतर भवे, तित्थयरस्स उप्पत्ती ॥ ११९ ॥ पहेली, दूसरी व तिसरी नरकसे निकाला हुआ जीव तीर्थकर बन सकता है, चौथी वगेरह नरक से निकला हुआ जीव तीर्थकर होता नहीं है [११८ - ११९] मनुष्य, तीर्यच, भुवमपति, व्यंतर और ज्योतिष से आया हुआ जीव तीर्थकर न होवे (गा. १२९, १३८) विमान ग्रैवेयक अनुदिशा के विमान और सर्वार्थसिद्ध विमानसे निकला हुआ जीव तीर्थकर चक्रवर्ती और राम होवे (गा. १३७ से १४१) (आ० वट्टेरक कृत मूलाचार, परिच्छेद १२) इस प्रकार आगति के प्रश्न को मद्दे श्वेताम्बर मानते है कि- भगवान् वैमानिक च्यवन पावे तो उनकी माता बारहवे स्वप्नमें नजर रखकर देवलोक से "विमान"
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy