SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकराधिकार दिगम्बर-तीर्थकर सम्बन्धी कई मान्यताएं और वर्तमान चौवीसी के तीर्थंकरों की जीवनीयां के लीए श्वेताम्बर और दिग. म्बर में कुछ २ मतभेद है। जैन-उनको भी सुलझाना चाहिये, दिगम्बर-भगवान् ऋषभदेव की माता मारुदेवी ऐरवत क्षेत्रके प्रथम तीर्थकरके पिता की युगलिनी बहिन है, और ऐरवत क्षेत्र के प्रथम तीर्थकर की माता वह भारतके नाभिराजाकी युगलिनी बहिन है, इस प्रकार अयुगलिक मातापिता से तीर्थकर का जन्म होता है, जब श्वेताम्बर मानते हैं कि नाभिराजा और मारुदेवी ये दोनों युगलिक राजारानी हैं उनसे भगवान ऋषभदेवका जन्म हुआ है. जैन-इसका निर्णय करनेके पूर्व अपने को युगलिक व्यवस्था देखलेनी चाहिये । भोग भूमिके काल में भाई बहिन का एक साथ ही जन्म होता था, और बाद में वे दोनों पतिपत्नी बनते थे, उस समयमें अपनी २ युगलिनी को छोड़ दूसरी से सम्भोग करना व्यभिचार माना जाता था इत्यादि सीधी सादी बातें थी। २० लाख पूर्व को उम्र होने के पश्चात भ० ऋषभदेव ने इनका संस्कार किया। आ० जिनसेनजीने विक्रमी नवमी शताब्दी में आदिनाथ पुराण बनाया है देवबंदवाले बाबू सूरजभान वकील के "ब्राह्मणां की उत्पत्ति" और "आदि पुराण समीक्षा" वगैरह लेखों से पत्ता चलता है कि. रचना काल की परिस्थिति को मद्दे नजर रख कर वह पुराण बनाया गया है, आ० जिनसेनजी ने स्वकालीन कर्णाटक की ब्राह्मणी सभ्यता को सामने रखकर उस पुराण का संदर्भ किया है उसमें प्रधानतया भगवान आदिनाथ का चरित्र
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy