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________________ आहारोय......हवई अरुहो ॥३४॥ (आ० कुन्दकुन्दकृत बोधप्राभृत) (३) बाह्यं तपः परमदुश्चरमाचरस्त्वं ॥८३॥ (आ० समन्तभद्रकृत स्वयंभू स्तोत्र) (५) तैजस समूह कृतस्य, द्रव्यस्याभ्यवहृतस्य पर्याप्त्या अनुत्तरपरिणामे क्षुत् क्रमेण भगवति च तत्सर्वम् ॥९॥ (५) आद्यश्चतुर्दशदिनै विनिवृत्त योगः । षष्ठेन निष्ठितकृति जिन वर्धमानः ॥ शेषा विधूत घनकर्म निबद्धपाशाः । मासेन ते यतिवरास्त्वभवन् वियोगाः ॥२६॥ मोक्ष पाते समय के० भ० आदिनाथ जीने चौदह दिन का के० भ० वर्धमानस्वामीने छ8 का और शेष २२ के०तीर्थकरों ने महीना का तप किया। माने वे कवलाहार लेते है उनका त्याग किया। (आ० पूज्यपादकृत-निर्वाण भक्ति) सारांश-तीर्थकर भगवान् आहार लेते हैं, तप भा करते हैं, उनको आहार का अभाव मानना यह कल्पना ही है, __इस तरह ओर २ अतिशयों में भी कुछ २ कम वेशी होगी। दिगम्बर-तीर्थकर भगवान को केवलज्ञान होने से १४ अतिशय देवकृत होते हैं । वे ये हैं २१ भाषा सार्यामागधी होवे २२ सब जीवों से मैत्री रहे, २३ छै ऋतुओं के वृक्ष एक साथ पत्ते, फूल, गुच्छे और फलों से सुशोभित रहें २४ भूमि रत्नमयी और शीशा के समान निर्मल बनी रहे २५ अनुकूल हवा चले २६ जनता में आनन्द बढ़े २७ वायु विहारभूमि से एकेक योजन तक 'कुडा कर्कट काँटे और कँकरी को हटा देवे और भूमि में खुशबू फैली रक्खे, २८ स्तनितकुमार खुशबू पानी की वर्षा करे २९ विहार में तीर्थकर के पैर के नीचे एकेक योजन प्रमाण १५ (२२५) कमल रहे । ३० भूमि में सब अनाज होवे । ३१ आठों दिशाएं और आकाश स्वच्छ निर्मल रहे ३२ देवों को महापूजा के निमित्त आह्वान होता रहे । ३३ आकाश में निराधार धर्मचक्र चले ३४ अष्ट मांगलीक चले।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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