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________________ (३) आ०मानतुंगसूरि पैर धरनेका ही बताते हैं। (भक्तामर-३२) (४) वरदत्त केवली शिला पट्ट पर बैठे। ( वरांग चरित्र सर्ग ३ श्लो. ६) (५) आश्रुतसागरजी तीर्थकरके लिये ही अतिशयरूप कमल द्वारा विहार बताते हैं, माने-तीर्थकर के सिवाय अन्य सब को भूमि विहार है। तीर्थंकर देव भी कमल स्पर्श करते हैं। (प्राभृत टीका) (६) आ०उमास्वातिजी ने केवली को शय्या, शीत, उष्ण और तृण स्पर्श होने का विधान किया है। (मोक्षशास्त्र अ. ९) ये सब प्रमाण स्पर्श क्रिया के पक्षमें हैं। इस हालतमें स्पर्श के जरिए वस्त्रकी मना करना वह युक्तियुक्त नहीं है। मानेकेवली भगवान वस्त्रधारी भी होते हैं। . दिगम्बर विद्वान भी तीर्थंकर को नग्नता का इन्कार करते हैं। तीर्थंकरों के अतिशयों में एक भी अतिशय ऐसा नहीं है कि जो उनकी नग्नता को छिपावें फिर वे भी नग्न दिखाई नही पड़ते हैं, उसका कारण? तीर्थकर भी वस्त्रधारी होते हैं, अत पव ये नग्न देखे जाते नहीं हैं। दिगम्बर-तीर्थकर और केवली उपदेश देते हैं, उनको शरीर है, मुख है, वचन योग है, भाषापर्याप्ति है और भाषापर्याप्ति कालमें ३० प्रकृतिओंका उदयस्थान है, यानी वे भाषा बोलते हैं। ( गोम्मटसार जीवकांड गा० २२७, २२८, ६६३, ६६४. ब्र० शीतलप्रसाद कृत मोक्षमार्ग प्रकाशक भा० २ पृ० १९५, १९६, २०६ ) उनकी वाणी सर्व गुण संपन्न होती है बारह पर्षदा उनका व्याख्यान सुनती हैं संतुष्ट होती हैं आनन्दित होती हैं, मगर वे दशम द्वार से निरक्षरी भाषा बोलते हैं । अट्ठारस महाभासा, खुल्लयभासा सयाई सत्त तदा। अक्खर अणक्खर प्पय सण्णीजीवाण सयलभासाओं ॥८९९।। एदासु भासासुं, तालुव दंतोट्ट कंठ वावारो। परिहरिय एक्ककालं, भव्वजणे दिव्यभासित्तं ॥९००॥
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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