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________________ १० निर्ग्रन्थ को ये मोहनीय कर्मजन्य दूषण होते नहीं है। यह तो दिगम्बर शास्त्र से स्पष्ट है। वह निर्ग्रन्थ अन्तर्मुहूर्त में केवली बनता है, तब ज्ञानावरणीय, दर्शमावरणीय व अन्तराय कर्म का क्षय हो जानेसे उक्त १४ दूषणों के उपरांत अज्ञान, मद, निद्रा, हिंसा, जूठ व चोरी इत्यादि दूषणों से रहित हो जाता है। ___ इस विश्लेषणसे तय है कि-केवली भगवान के अज्ञानता वगै. रह जो १८ दोष माने गये हैं वह ठीक है। . और दिगम्बर शास्त्रों में जो उक्त क्षुधा वगैरह १८ दूषण. गिनाये हैं, वे सिर्फ सिद्धोंके हिसाब से हैं, मगर केवली भगवान से जोड़ दिये गये हैं, वो ठीक नहीं है। वास्तव में क्षुधा वगैरह १८ दूषण केवलीके दृषण नहीं हैं; अज्ञानता आदि १८ दूषण ही केवलीके १८ दूषण हैं। आचार्य पूज्यपादकृत "सिद्धभक्ति" श्लोक ६ और ८ से भी यह मान्यता अधिक पुष्ट होती है। यद्यपि केवली भगवान को आहार निहार रोग मल परिषह उपसर्ग शाता अशाता चलना समुद्धात और मृत्यु ये सब देह प्रवृत्ति अवश्य होती हैं, किन्तु वे निरीह भाव से होती हैं। दिगम्बरसम्मत शास्त्र में भी निर्देश है किप्रातिहार्यविभवैः परिष्कृतो, देहतोऽपि विरतो भवानभूत् । मोक्षमार्गमशिषन् नरामरान , नापि शासनफलेषणातुरः ॥७३॥ काय-वाक्य-मनसां प्रवृत्तयो, नामवंस्तव मुनेश्चिकिर्षया । नाऽसमीक्ष्य भवतः प्रवृत्तयो, धीर ! तावकमचिन्त्यमीहितम् ॥७४॥ (स्वामो समन्तभद्र का स्वयंभू स्तोत्र, स्तो० १५) कायवाङ्मनसां सत्तायां सत्यामपि ॥ (बोधप्रामृत गा० ३५ टीका) केवली भगवान् केवली समुद्धात करते हैं। माने केवली भगवान को आहार वगैरह शारीरिक प्रवृत्तियां होती हैं।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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